Shiv Sena Symbol – अंधेरी में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आयोग ने शिंदे गुट को और उद्धव ठाकरे गुट को चुनाव निशान और नाम दे दिया है। मुंबई ईस्ट में सियासी मैदान में इस बार राजनीतिक लड़ाई होगी।
मशाल बनाम ढाल-तलवार की जंग होगी। चुनाव आयोग ने आने वाले उपचुनावों नजर में रखते हुए,शिवसेना के दोनो गटों के नाम और निशाणी को लेकर चुनाव आयोग ने फैसला दे दिया है।
चुनाव आयोग के मुताबिक, उद्धव ठाकरे को मशाल चुनाव निशान दिया गया है। अब इस गट का नाम शिवसेना उद्धव ठाकरे बालासाहेब ठाकरे होगा। वहीं दुसरी तरफ शिंदे गट को बालासाहेबची शिवसेना नाम मिला है। दुसरी तरफ शिंदे गुट की शिवसेना को ढाल-तलवार का चिन्ह दिया है।
तनाव निर्माण होने से पहले चुनाव आयोग ने शनिवार को शिवसेना के धनुष और तीर के चिह्न को सील कर दिया था। आने वाला उपचुनाव में दोनों गुटों में से कोई भी इस निशान का इस्तेमाल नहीं कर सकता है।
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अंधेरे ईस्ट में क्यों हो रहे उपचुनाव ?
रमेश लटके अंधेरे ईस्ट के विधायक थे, इस साल दुबई में अटैक की वजह से मौत हो गई थी। यह उपचुनाव उद्धव ठाकरे और शिंदे गुट के लिए पहला इम्तेहान है। तीन नवंबर को वोटिंग होगी और 6 नवंबर को वोटिंग की गिनती कीजिए जायेगी। चुनाव आयोग के मुताबिक, उद्धव ठाकरे को मशाल चुनाव निशान दिया गया है।

अब इस गट का नाम शिवसेना उद्धव ठाकरे बालासाहेब ठाकरे होगा। दुसरी दफा इतिहास को दोहराने जैसा है इससे पहले शिवसेना ने मशाल निशान पर चुनाव लड़ चुकी है। 1985 में मजगांव विधानसभा सीट पर छगन भुजबल ने मशाल निशान (चिह्न) के उपर चुनाव लड़ा था।
शिंदे गुट ने इन चुनाव निशान को मांगा था
शिंदे गुट ने चुनाव निशान के लिए त्रिशूल सिंबल पसंद किया था। लेकिन चुनाव आयोग ने इसे त्रिशूल को धार्मिक संकेत होने के वजह से रद्द कर दिया। और पर्याय के तौर पर दिए गए चुनाव निशान में से गदा का विकल्प चुनाव आयोग ने दिया था, लेकिन इस धार्मिक प्रतीक बताते हुए चुनाव आयोग ने इसे रद्द कर दिया।
फिर इसके बाद इलेक्शन कमीशन ने शिंदे गुट को मंगलवार को 11 अक्टूबर का सुबह 8 बजे तक का वक्त दिया था। फिर तीन निशान में से पेश करने के लिए कहा था। शिंदे गुट ने चुनाव निशान के तौर पर ढाल-तलवार को चुना फिर चुनाव आयोग ने मान लिया, ढाल-तलवार चुनाव निशान पर के दशक में शिवसेना के उम्मीदवार चुनाव लड़ने लिए मैदान में उतरे थे।
शिंदे गुट ने किया उद्धव ठाकरे को निशाना
शिंदे गुट का कहना है कि बालासाहेब ठाकरे की सोच के असली वारिस वो है, उद्धव ठाकरे को निशाना बनाते हुए कहा कि कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाकर हिंदुत्ववादी सोच के साथ समझौता कर लिया था। फिर शिंदे गुट ने अपनी पार्टी का नाम चुना “बालासाहेब की शिव सेना” जिसे फिर चुनाव आयोग ने मंजूर कर लिया।
यह चुनाव चिह्न कब तक रहेंगे
चुनाव आयोग ने दोनों गुटों के नाम चुनाव चिह्न अस्थायी तौर पर दिए हैं। अंधेरे ईस्ट के उपचुनाव के बाद और बीएमसी इलेक्शन से पहले इन दोनों के नाम और चुनाव निशान फिर से बदल दिए जायेंगे, जब तक तय ना हो कि असली शिवसेना कीसकी है। फिर जो भी असली शिवसेना का वारीस होगा, उसे धनुष-बाण वाला पुरान चुनाव निशान दिया जाएगा।
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